आमेर... समय की धुरी पे सदियों से टिका एक किला... जो सिर्फ़ एक किला नहीं... पत्थरों में तराशी हुई एक दिलकश दास्तां है... जिसे जितनी बार भी सुनो हर बार ही कोई न कोई नई परत खुल जाती है... पहले से भी ज़्यादा दिलफ़रेब... पहले से भी ज़्यादा अनूठी... इतनी दिलचस्प की आप आवाक से बस उसे सुनते ही रह जाते हैं... जैसे पहली बार सुन रहे हों..
यूँ तो जाने कितनी बार आमेर जा चुके हैं.. पर हर बार उसे दिन के उजाले में ही देखा है... तमाम टूरिस्ट्स की भीड़ के बीच... दिन के समय आप जब भी वहाँ जाते हैं तो उस किले की भव्यता से रूबरू होते हैं... लंबा चौड़ा प्रांगण... विशाल द्वार.. ख़ूबसूरत फ्रेस्को पेंटिंग्स से सजी गणेश पोल की दीवारें... अनगिन शीशों से चमचमाता शीश महल... माओटा झील... केसर क्यारी... दीवान-ए-आम... दीवान-ए-ख़ास... और भी पता नहीं क्या क्या... पर कुछ है जो उस दिन के उजाले में नहीं दिखता.. या यूँ कहें महसूस नहीं होता...
दिन ढले आमेर से रूबरू होना अपने आप में एक बेहद रूहानी अनुभव है... बेहद ख़ास ! सियाह रात के सन्नाटे में जब आमेर तमाम रंगों की रौशनी में नहा जाता है तो जैसे किले की दीवारें, झरोखे, दरवाज़े सब आपसे बातें करने लगते हैं... यूँ लगता है जैसे आसमान के सारे तारे उतर कर आमेर के आंचल में आ कर सज गए हैं... पार्श्व में बजते राजस्थानी लोक गीत आपको मोहपाश में बांध लेते हैं... गोया सैकड़ों अप्सराएँ आमेर के प्रांगण में घूमर खेल रही हों... आप ठगे से एक एक लम्हें को अपने दिल की गहराइयों में संजोने की कोशिश में लगे रहते हैं... अंधेरे उजाले की इस कशमकश के बीच शीश महल की ख़ूबसूरती अपने चरम पे होती है...
यूँ तो शाम के समय आप आमेर के कुछ ही हिस्से में घूम पाते हैं फ़िर भी आपका दिल एक तृप्ति महसूस करता है जो दिन के समय नहीं महसूस होती... पूरे माहौल में एक रूमानियत सी तारी रहती है... न ज़्यादा भीड़ भाड़ न शोर शराबा... चारों ओर बस शांति... ऐसा सन्नाटा जो आपको डराता नहीं है... अपनी ओर खींचता है... आमेर एक प्रेमी के जैसे आपको रिझाता है... यूँ लगता है गोया आमेर और आप दुनिया से छुप कर अकेले में कुछ प्यार भरे लम्हें बिता रहे हैं... एक दूसरे को समझ रहे हैं... आत्मसात कर रहे हैं... मन होता है समय का पहिया बस यहीं रुक जाए... आप यूँ ही आमेर के आग़ोश में बैठे रहें.. ये जादू कभी न टूटे...!
शानदार वर्णन किया है आपने।
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 18/01/2019 की बुलेटिन, " बढ़ती ठंड और विभिन्न स्नान “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteआमेर का किला दिन में कई बार देखा है...लेकिन उसकी रात्रि में सुन्दरता देख कर मन मुग्ध हो गया.. बहुत सुन्दर चित्रमय प्रस्तुति...
ReplyDeleteअपना एक अलग अनुभव एक अलग सा अहसास भी ....शानदार वर्णन
ReplyDeleteहिंदी ब्लॉग जगत को ,आपके ब्लॉग को और आपके पाठकों को आपकी नई पोस्ट की प्रतीक्षा है | आइये न लौट के फिर से कभी ,जब मन करे जब समय मिलते जितना मन करे जितना ही समय मिले | आपके पुराने साथी और नए नए दोस्त भी बड़े मन से बड़ी आस से इंतज़ार कर रहे हैं |
ReplyDeleteमाना की फेसबुक ,व्हाट्सप की दुनिया बहुत तेज़ और बहुत बड़ी हो गयी है तो क्या घर के एक कमरे में जाना बंद तो नहीं कर देंगे न |
मुझे पता है आपने हमने बहुत बार ये कोशिस की है बार बार की है , तो जब बाक़ी सब कुछ नहीं छोड़ सकते तो फिर अपने इस अंतर्जालीय डायरी के पन्ने इतने सालों तक न पलटें ,ऐसा होता है क्या ,ऐसा होना चाहिए क्या |
पोस्ट लिख नहीं सकते तो पढ़िए न ,लम्बी न सही एक फोटो ही सही फोटो न सही एक टिप्पणी ही सही | अपने लिए ,अंतरजाल पर हिंदी के लिए ,हमारे लिए ब्लॉगिंग के लिए ,लौटिए लौटिए कृपया करके लौट आइये
यही आग्रह मैं सबसे कर रहा हूँ उनसे भी जो पांच छह साल और उससे भी अधिक से पोस्टें नहीं लिख रहे हैं कारण का पता नहीं मगर मैं आवाज़ देता रहूंगा और आपसे भी यही आग्रह करूंगा कि आप भी मेरे साथ उनके साथ हो लीजिये |
Haal hi mein Amer fort ho aaya hu..dobara se yaadein taaza karadi aapne.
ReplyDeleteBohot hi achha varnan kiya hai aapne!
Bahut khoob. Keep writing.
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