Thursday, April 20, 2017

केरल डायरीज़ - ३ : प्रकृति की गोद में परीकथा से घर... कोच्चि से मुन्नार



३० जनवरी २०१७ 

कहने को केरल में आये दो दिन हो चुके थे... अब तक हम कोच्ची से भी मिल चुके थे और अथिरापल्ली के भीमकाय झरनों से भी... फ़िर भी जाने क्या था की मन को अब तक सुकून नहीं था... या यूँ कहें की यात्रा में होने का एहसास नहीं था.. अब आप सोच रहे होंगे की वो कैसा होता है...  इसे हमारे नज़रिये से कुछ ऐसे समझिये कि जब हम यात्रा में होते हैं तो पूरी तरह ख़ुद को प्रकृति के हवाले कर देते हैं... और अपने आसपास के वातावरण में ख़ुद को खो देते हैं... या यूँ कहिये की सब कुछ जज़्ब करते चलते हैं... यात्रा के दौरान ज़्यादा बातचीत करना भी हमे पसंद नहीं... बस हम, हमारा कैमरा, प्रकृति और दिमाग़ में ढेर सारा कौतुहल... यहाँ के लोग कैसे हैं.. यहाँ का खाना पीना, रहन सहन कैसा है... पेड़ पौधे, खेत खलिहान, पक्षी जानवर, से लेकर मिट्टी का रंग, हवा की ख़ुश्बू और पानी की मिठास तलक... सब कुछ... दिमाग किसी अलग ही स्टेट में होता है यात्रा के दौरान.. ट्रैवलिंग हमारे लिये मैडिटेशन की तरह है... जो अब तक मिसिंग लग रहा था हमें.. 

तो एक बार फ़िर मन में ढेर सारे कौतुहल के संग केरल यात्रा का तीसरा दिन शुरू किया... आज बारी थी मुन्नार की... इस ट्रिप के हमारे सबसे प्रिय डेस्टिनेशन की... कोच्ची शहर से बाहर निकलते निकलते यही कोई आधे घंटे के भीतर ही केरल का एक अलग ही रूप देखने को मिला... केरल की वो हरियाली जिसके बारे में अब तक सिर्फ़ किताबों और तस्वीरों में देखा-सुना था वो बाहें फैलाये हमसे गले मिलने को बेताब खड़ी थी राहों में... जहाँ तक नज़र जाये सड़क के दोनों ओर केले और नारियल के अनगिनत पेड़ एक अनूठी छटा बिखेर रहे थे... केरल का हरा सोना... और उस सब के बीच छोटे-बड़े ख़ूबसूरत चटक रंगों से रौशन घर यूँ खड़े थे गोया कोई परीकथा आपकी आँखों के सामने साँस ले रही हो... घरों का वास्तु विन्यास या आर्किटेक्चर ऐसा की पहली नज़र में आपको सम्मोहित कर ले और अपने प्यार में पड़ने को मजबूर कर दे... केरल की सौम्यता से लबरेज़... पहली चीज़ जो आप केरल और उसके आर्किटेक्चर के बारे में कह सकते है वो है डाउन टू अर्थ - मिट्टी से जुड़ा हुआ.. फ़िर भले वो कोई आलीशान बंगला हो या छोटा सा एक कमरे का घर जो आपकी पहुँच से बस दो सीढ़ी भर दूर हो... 

ज़रा इमैजिन कर के देखिये.. अपने शहर में कोई चटक नीला, गहरा गुलाबी या फ़िर हरा या फालसी रंग का घर सोच भी सकते हैं क्या आप ? कैसा बेतुका सा लगेगा... अभी तक हमने तो कम से कम हिन्दुस्तान के किसी और शहर में ऐसे रंग के घर नहीं देखे कभी... सोच के ही कैसा वीयर्ड सा लगता है... पर यहाँ देखिये हर उस वीयर्ड कलर का घर कितना ख़ूबसूरती से खड़ा है नारियल और केले के पेड़ों के बीच... एक बार कभी ऐसे ही किसी घर के रह कर वहाँ के कल्चर को समझने की भी ख्वाहिश है मन में... कितना सुकून भरा होगा न ऐसे शान्त, पौल्यूशन फ्री एनवायरनमेंट में रहना... केरल ऐसे ही तो नहीं हिन्दुस्तान का सबसे साफ़ सुथरा प्रदेश कहलाता है... 

यहाँ से गुज़रते हुए एक और बात जो आकर्षित करती है वो ये की बड़े बड़े शहरों की तरह यहाँ छोटी-बड़ी कॉलोनी, पॉश एरिया, गाँव-शहर जैसी बाउन्ड्रीज़ नहीं हैं... एक बड़े आलीशान बंगले के ठीक बगल में एक छोटा सा एक कमरे का घर भी हो सकता है या एक छोटी सी दुकान भी... कहीं कोई डिमार्केशन नहीं कि ये अमीर लोगों का एरिया है और ये कम अमीर लोगों का... कितना ख़ूबसूरत है न ये तारतम्य... बिलकुल प्रकृति की तरह जो कभी कोई भेदभाव नहीं करती किसी के बीच... शायद प्रकृति के इतने क़रीब रह के यहाँ के लोग भी उस जैसे ही हो गए हैं...

जारी...



( नोट - सभी फ़ोटो को बड़ा कर के देखने के लिए उन पर क्लिक करें )

यात्रा के पिछले पन्ने :

1 comment:

  1. आपकी तूलिका से केरल की बहुत खूबसूरत तस्वीरें सामने आ रही हैं। अगली कड़ी का इंतज़ार है।

    ReplyDelete

दिल की गिरह खोल दो... चुप ना बैठो...