Wednesday, April 5, 2017

केरल डायरीज़ - १ : यादों ने फिर दस्तक दी !



केरल से वापस आये आज पूरे 2 महीने हो गये... 10 दिन का ट्रिप एक ऐसे राज्य में जो न जाने कब से आपकी ट्रेवल बकेट में था... गए थे तो सोचा था की रोज़ डायरी लिखेंगे... वहाँ के सारे एक्सपीरियंसिज़... सारी अनुभूतियाँ... पर वो हो न सका... दिन भर का घूमना और रात होते होते थक के चूर हो जाना... हिम्मत ही नहीं बचती थी कुछ लिखने पढने की... सोचा वापस जा के लिखेंगे... और फ़ोटोज़ तो ले ही रहे हैं इतनी तो सब याद रहेगा... पर अनुभूतियों को शब्द देना आसान काम नहीं है... और जल्दबाज़ी का तो बिलकुल भी नहीं... 

वहाँ थे तो सुबह शाम फेसबुक लाइव कर कर के परेशान कर दिया था सबको पूरे 10 दिन... वापस आये तो दोस्त कहते कहते थक गये कि लिखो कुछ उस ट्रिप के बारे में... पर लिखने का महूरत नहीं निकला तो नहीं निकला... अब इसे आलस का नाम दे लें या कुछ और दोस्तों के सारे उलाहने सर माथे पर... 

आज लिखने बैठे हैं तो लगता है मानो यादें कुछ कुछ धुंधली हो चली हैं... वो चमक नहीं रही अब उनमें... फ़िर भी यादों को झाड़ पोछ के थोड़ा कुछ संजो रही हूँ यहाँ... उम्मीद है दोस्तों को निराश नहीं करुँगी... 

२८ जनवरी २०१७ 

केरल.. भारत का वो हिस्सा जहाँ इंद्रदेव सबसे पहले बारिशें भेजते हैं... वो हिस्सा जो दक्षिण में भारत का अंतिम छोर है... वो हिस्सा जो तकरीबन 600 किलोमीटर तक दिलफ़रेब फिरोज़ी रंग के अरब सागर से घिरा है... वो हिस्सा जो नारियल के पेड़ों और हरियाली से सराबोर है... वो हिस्सा जिसे "स्पाइस कैपिटल ऑफ़ दा वर्ल्ड" कहते हैं... वो हिस्सा जो न जाने कब से हमारी ट्रेवल लिस्ट में था... शायद तब से जब बचपन में जिऑग्रफी की बुक में पढ़ा था... या शायद तब से जब पहली बार टीवी पर कथकली नर्तकों को रंगबिरंगा मुखौटा लगा के अनोखी सी पोशाक में नृत्य करते देखा था... कुछ कौतुहल सा भर गया था मन में तब से ही... उस जगह को जानने का... वहाँ की संस्कृति को समझने का... ये जानने का कि आख़िर कश्मीर की ख़ूबसूरत झीलों, हिमाचल के ख़ुशनुमा पहाड़ों, कच्छ के चांदी से चमकते रण या फ़िर भारत के अनगिन ख़ूबसूरत हिस्सों में से केरल को ही क्यूँ चुना उस ऊपर वाले ने अपनी धरती के तौर पे... क्यूँ केरल को "गॉड्ज़ ओन कंट्री" यानी "देवभूमि" का दर्जा मिला... आख़िर ऐसा क्या है वहाँ...

इतने वर्षों का कौतुहल आख़िरकार इस साल वहाँ खींच ही ले गया हमें... बचपन से मैप पे हमेशा इत्तू सा मार्क करा जाने वाला केरल असल में इत्ता बड़ा है... इतना कुछ है वहाँ देखने को कि एक बार में सब कुछ  देख पाना लगभग नामुमकिन था... और इस ट्रिप पर हमें कन्याकुमारी और रामेश्वरम भी कवर करना था... तो आख़िरकार बहुत माथापच्ची के बाद कुछ जगहें फाइनल हुईं... और मन में ढेर सारा उत्साह लेकर हम चल दिए केरल से मिलने... वहाँ की संस्कृति को जानने समझने... तो आइये आपको भी मिलवाती हूँ केरल से... उस तरह जैसे हमने महसूसा उसे... 

केरल से पहली मुलाक़ात रात लगभग साढ़े नौ बजे हुई जब कोच्ची एयरपोर्ट पर लैंड किया हमने... मिलना तो था केरल की हरियाली से पर पहले गले मिली सियाह सी रात... एयरपोर्ट होटल से तक़रीबन 35 किलोमीटर दूर था... शहर के बाहर... रास्ता भी सन्नाटा था और रौशनी भी कम थी... सड़क के सिवा आस पास कुछ नहीं दिख रहा था... टैक्सी से होटल जाते वक़्त शीशे से बाहर अँधेरे में झाँक के सोच रहे थे कि यहाँ क्या होगा... नारियल के पेड़ होंगे या कोई नदी जैसा अब तक पिक्चरों और फोटो में देखते आये थे... ख़ैर तक़रीबन 45 - 50 मिनट बाद होटल पहुँचे जो मार्केट और मॉल्स से घिरा हुआ था... सामने मेट्रो रेल की लाइन गुज़र रही थी... कुछ भ्रम टूटे कुछ नये मन में घर कर गए... अगली सुबह क्या नया ले कर आयी ये अगली कड़ी में...!

3 comments:

  1. Wow didi you r so good I m feeling I m ba k in the time when we started the journey.i m so curious to read the next Kardi

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  2. इतने जीवंत शब्दों में आपने लिखा है... लग रहा है जैसे पढ़ने वाला खुद केरल की यात्रा पर है।

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दिल की गिरह खोल दो... चुप ना बैठो...