Wednesday, September 3, 2014

जैसे कोई किनारा देता हो सहारा... मुझे वो मिला किसी मोड़ पर...!



तुमसे जितना झगड़ती हूँ प्यार उतना ही बढ़ता जाता है... रोती हूँ तो सपने धुल के नये से हो जाते हैं.. कुछ और चमकीले... तुम्हारे साथ हँसती हूँ तो उन सपनों में इन्द्रधनुषी रँग भर जाते हैं... तुम्हें हँसता देखती हूँ तो उनमें जान आ जाती है... हम तीनों मिल कर जी उठते हैं फिर से... तुम.. मैं और हमारे सपने...!

तुम्हारी मुस्कुराहट को पेंट करने का दिल करता है कभी कभी... काँच सी पारदर्शी तुम्हारी आँखें... उतना चमकदार रँग बना ही नहीं जो उन्हें कैनवस पे उतार सके... कभी कभी सोचती हूँ तुम्हारी रूह को एक काला टीका लगा दूँ... कहाँ बची हैं अब इतनी पाकीज़ा रूहें धरती पर... कहाँ रह गये हैं इतने साफ़ दिल इंसान...

मैं बूढ़ी होना चाहती हूँ तुम्हारे साथ... तुम्हें देखते हुए... तुमसे झगड़ते हुए... तुम्हें प्यार करते हुए.... उम्र के उस पड़ाव पर जब घुटनों में दर्द रहा करेगा... तुम्हारे गले में बाहें डाल मैं थिरकना चाहती हूँ तुम्हारी धड़कनों की सिम्फनी पे... मैं उड़ना चाहती हूँ तुम्हारे साथ तुम्हारा हाथ पकड़ के... तब जब ये दुनिया वाले शायद हमें शक की निगाहों से ना देखें... मैं पूरी दुनिया घूमना चाहती हूँ तुम्हारे साथ... वो सारे ड्रीम डेस्टिनेशंस जहाँ जाने का सपना हमने मिल कर देखा था... क्या तुम मुझे बाइक पर बिठा के एक लॉन्ग ड्राइव पर ले चलोगे तब... मैं महसूस करना चाहती हूँ हवा को अपने बूढ़े हो चले सफ़ेद बालों में...

मैं एक छोटा सा घर बनाना चाहती हूँ... किसी पहाड़ी गाँव में... जहाँ हम दोनों बुड्ढे बुढिया मिल कर बागवानी करेंगे... जंगल से लकड़ी बिन के लायेंगे... चूल्हे में खाना बनायेंगे... कच्ची पक्की रोटियाँ सेकेंगे... प्रकृति की सुंदरता निहारेंगे... चिड़ियों को दाना खिलायेंगे और सारा दिन फ़ुर्सत से बैठ कर सिर्फ़ बातें करेंगे...

आज सुबह से ही शहर का मौसम खुशनुमा सा है... कुछ अच्छा सा करने का दिल हो रहा है... तो इस खूबसूरत से दिन उस ऊपर वाले का शुक्रिया करना चाहती हूँ... तुम्हें मेरी ज़िंदगी में लाने के लिये... तुमसे मेरी ज़िंदगी खूबसूरत है दोस्त... तुमसे ही इस ज़िंदगी को मानी मिले हैं...!

मेरे पसंदीदा गीत तुम हो... तुम्हारा पसंदीदा गीत तुम्हारे लिये...