Monday, June 13, 2011

शमी शमयते पापम् शमी शत्रुविनाशिनी।


एक छोटी सी जिज्ञासा कभी-कभी ढेरों ऐसी अनूठी जानकारियाँ दे जाती है कि आप सोच भी नहीं सकते... ऐसा ही कुछ हुआ कल हमारे साथ...

पेड़ पौधों का हमें बचपन से ही शौक़ रहा है... शायद पापा से विरासत में मिला है... अभी भी याद आता है कैसे बचपन में जब भी छुट्टियों में गाँव जाते थे तो वो बाग़ में घुमाने ले जाते थे और पूछा करते थे अच्छा बताओ ये कौन सा पौधा है, वो किस चीज़ का फूल है... या कभी किसी जंगली पेड़ का फल या बीज तोड़ लाते थे और कहते थे पता है ये क्या है... बस समझिये तभी से ये लत लग गई... फूलों और पौधों को पहचानने और उनका नाम याद रखने की...

कल शाम किसी के यहाँ गृह प्रवेश की पूजा में गये थे... घर के बाहर सड़क के किनारे यही कोई ६-७ फुट का एक छोटा सा पेड़ लगा हुआ था... गहरे भूरे रंग का बहुत सी दरारों वाला सूखा सा तना... बिलकुल महीन महीन सी हल्की हरी पत्तियां... और उसमें लगे बड़े ही अनूठे किस्म के छोटे से ब्रश के आकार के फूल, जिसका पिछला हिस्सा गहरा गुलाबी रंग का था और अगला सिरा पीला... जाने क्या था उस पेड़ में जो बार बार अपनी ओर आकर्षित कर रहा था... जब नहीं रहा गया तो जा कर एक छोटी सी टहनी तोड़ ही ली उसकी... घर आ कर पापा को दिखाया कि आख़िर ये फूल है कौन सा जो हमें नहीं पता... उस छोटी सी टहनी के आधार पर पापा भी पक्की तरह से कुछ नहीं बता पाये पर बोले कि पत्तियों से तो लग रहा है कि शायद "शमी" है... और ये भी बताया कि इसकी पत्तियाँ पूजा में काम आती हैं..

अब ये तो नाम ही हमने पहली बार सुना था तो हो गई खुजली शुरू... गूगल बाबा की जय हो... और बस खोजने बैठ गये कि आख़िर ये "शमी" क्या बला है... और फिर जो जानकारियों का पिटारा खुला तो बस खुलता ही गया... अब इतनी रोचक जानकारियाँ थीं तो सोचा क्यूँ ना ये सब आपके साथ भी सांझा कर लिया जाये कि ये "शमी" आख़िर है क्या बला :)

शमी जो खेजड़ी या सांगरी नाम से भी जाना जाता है मूलतः रेगिस्तान में पाया जाने वाला वृक्ष है जो थार के मरुस्थल एवं अन्य स्थानों पर भी पाया जाता है... अंग्रेजी में यह प्रोसोपिस सिनेरेरिया नाम से जाना जाता है.

विजयादशमी या दशहरे के दिन शमी के वृक्ष की पूजा करने की प्रथा है... कहा जाता है ये भगवान श्री राम का प्रिय वृक्ष था और लंका पर आक्रमण से पहले उन्होंने शमी वृक्ष की पूजा कर के उससे विजयी होने का आशीर्वाद प्राप्त करा था... आज भी कई जगहों पर लोग रावण दहन के बाद घर लौटते समय शमी के पत्ते स्वर्ण के प्रतीक के रूप में एक दूसरे को बाँटते हैं और उनके कार्यों में सफलता मिलने कि कामना करते हैं...

शमी वृक्ष का वर्णन महाभारत काल में भी मिलता है... अपने १२ साल के वनवास के बाद एक साल के अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने अपने सारे अस्त्र इसी पेड़ पर छुपाये थे जिसमें अर्जुन का गांडीव धनुष भी था... कुरुक्षेत्र में कौरवों के साथ युद्ध के लिये जाने से पहले भी पांडवों ने शमी के वृक्ष की पूजा करी थी और उससे शक्ति और विजय की कामना करी थी... तब से ही ये माना जाने लगा जो भी इस वृक्ष कि पूजा करता है उसे शक्ति और विजय मिलती है...

शमी शमयते पापम् शमी शत्रुविनाशिनी ।
अर्जुनस्य धनुर्धारी रामस्य प्रियदर्शिनी ॥
करिष्यमाणयात्राया यथाकालम् सुखम् मया ।
तत्रनिर्विघ्नकर्त्रीत्वं भव श्रीरामपूजिता ॥

हे शमी, आप पापों का क्षय करने वाले और दुश्मनों को पराजित करने वाले हैं
आप अर्जुन का धनुष धारण करने वाले हैं और श्री राम को प्रिय हैं
जिस तरह श्री राम ने आपकी पूजा करी मैं भी करता हूँ
मेरी विजय के रास्ते में आने वाली सभी बाधाओं से दूर कर के उसे सुखमय बना दीजिये

एक और कथा के अनुसार कवि कालिदास ने शमी के वृक्ष के नीचे बैठ कर तपस्या कर के ही ज्ञान कि प्राप्ति करी थी.

शमी वृक्ष की लकड़ी यज्ञ की समिधा के लिए पवित्र मानी जाती है... शनिवार को शमी की समिधा का विशेष महत्त्व है... शनि देव को शान्त रखने के लिये भी शमी की पूजा करी जाती है... शमी को गणेश जी का भी प्रिय वृक्ष माना जाता है और इसकी पत्तियाँ गणेश जी की पूजा में भी चढ़ाई जाती हैं...

बिहार और झारखण्ड समेत आसपास के कई राज्यों में भी इस वृक्ष को पूजा जाता है और इसे लगभग हर घर के दरवाज़े के दाहिनी ओर लगा देखा जा सकता है... किसी भी काम पर जाने से पहले इसके दर्शन को शुभ मना जाता है...

राजस्थान के खेजराली गाँव में रहने वाले बिशनोई समुदाय के लोग शमी वृक्ष को अमूल्य मानते हैं और इसे कटने से बचाने के लिये सन १७३० में अमृता देवी के नेतृत्व में चिपको आन्दोलन कर के ३६३ बिशनोई लोग अपनी जान तक दे चुके हैं... ये चिपको आन्दोलन की सबसे पहली घटना थी...

कहते हैं ये पेड़ जहाँ होता है वहाँ की ज़मीन और अधिक उपजाऊ हो जाती है... इसकी जड़ से हल भी बनाया जाता है...

एक आख़िरी बात जो पता चली इस पेड़ के बारे में वो ये कि ऋग्वेद के अनुसार शमी के पेड़ में आग पैदा करने कि क्षमता होती है और ऋग्वेद की ही एक कथा के अनुसार आदिम काल में सबसे पहली बार पुरुओं (चंद्रवंशियों के पूर्वज) ने शमी और पीपल की टहनियों को रगड़ कर ही आग पैदा करी थी...

उफ़... एक नन्हां सा कौतुहल और कितना कुछ जाना एक पेड़ के बारे में... एक दोस्त अक्सर कहा करता है... तुम्हें बड़ी फ़ुर्सत से बनाया है भगवान ने... अब भला बताइये फ़ुर्सत से ना बनाया होता तो इत्ती सारी जानकारी मिलती आपको ?

15 comments:

  1. Nice info... achcha laga ye sab padhkar .. Khejri Rajasthan ka State Tree bhi hia

    Happy Blogging

    ReplyDelete
  2. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी (कोई पुरानी या नयी ) प्रस्तुति मंगलवार 14 - 06 - 2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    सफर पुरानी राहों से आगे की डगर पर , साप्ताहिक काव्य मंच

    ReplyDelete
  3. वैसे सांगरी और सागर में ज्यादा फर्क नहीं है :)

    ReplyDelete
  4. सुन्दर पोस्ट, अच्छी जानकारी, कुछ किम्वदंतियां भी होती हैं जो जिज्ञासा जगती हैं. सपनीला संसार... एक वक़्त इसी में जीते थे हम. आज भी सोच कर और समझ को यदि परे रख दें तो रोमांच होता है.
    ये पेड़ हमारे आँगन में भी है. जब भी दिल्ली आता हूँ माँ तोड़ कर देती है रखने को. पर इसका फूल आज तक नहीं देता था. इसे बड़े बड़े पेड़ भी देखे है. सुन्दर फूल है बहुत अलग सा.

    ReplyDelete
  5. @ आशीष जी... खेजड़ी राजस्थान का राज्य पेड़ है.. वाह ! जानकारी में एक और इज़ाफा :)

    @ साग़र... सोच और समझ के परे एक और भी एक चीज़ होती है जिसे हम आस्था कहते हैं... देखा जाये तो चंद पत्तियाँ हमारी क्या रक्षा करेंगी पर फिर भी माँ कि आस्था ही है उसमे जो वो हर बार आपको ये पत्तियाँ देती हैं और आप भी उनकी आस्था का सम्मान कर के रख लेते हैं :)

    ReplyDelete
  6. बहुत ही अच्‍छी जानकारी दी है आपने ।

    ReplyDelete
  7. शमी की जानकारी से विमुख था आपने अच्छी जानकारी उपलब्ध कराई बधाई

    ReplyDelete
  8. बड़ी ही ज्ञानभरी जानकारी दी इस पोस्ट के माध्यम से।

    ReplyDelete
  9. ज्ञानभरी जानकारी
    बधाई और शुभकामनाएं |

    - विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

    ReplyDelete
  10. आपके इस कौतुहल और शौक के कारण हमें भी पता चला इस अनूठे पेड़ के बारे में...
    बहुत बहुत शुक्रिया...:))

    ReplyDelete
  11. हमारे यहाँ शमी है ....एक पौधा ही समझा बस....कोई महत्त्व नहीं दिया.....तुम्हारे कारण अब उस पौधे इम्पोर्टेंस मिलना शुरू हो गया ......दूसरी बात हमें इसी वरायटी का शमी चाहिए, लाकर दो जल्दी ......

    ReplyDelete
  12. ठीक शमी की डाल के नीचे बैठ कर पोस्ट पढी…… हमारे घर की बालकानी से सटा ही है ना पेड़… या पौधा कह लूँ, चुंकि अभी भी बचपना बाकी है उसमें :)…

    कवियों और लेखकों के लिये शमी बड़ा महत्व रखता है ॠचा जी… हिन्दू धर्म में भगवान चित्रगुप्त को शब्दों और लेखनी का देवता माना जाता है और शब्द-साधक, यम-द्वितीया (दीपावली के दो दिन बाद)को यथा-संभव शमी के पेड़ के नीचे या उसकी पत्तियों से उनकी पूजा करते हैं।

    बहुत अच्छी पोस्ट !

    ReplyDelete
  13. @ प्रिया... पहले अपने लिये तो ढूंढ़ कर लायें... तुम्हारे पास तो फिर भी है एक :)

    @ रवि जी... क्या बात है.. शमी के नीचे बैठ कर शमी कि पोस्ट पढ़ी :) शमी के बारे में कुछ और जानकारी देने का शुक्रिया..

    ReplyDelete
  14. priya n richa ji..........vaise mujhe aajtak jaankari nahi thi................but ek frnd aur isi blog ke dwaare hame bhi kuch history ki jaankari ki baat pata chali.............thanks........
    ravi....

    ReplyDelete

दिल की गिरह खोल दो... चुप ना बैठो...