Saturday, November 13, 2010

स्पर्श


मौन आँखों में चंद ख़्वाब
और होंठों पर दुआ लिये
हाँथों से टटोल-टटोल के
तुम्हारा हर क़तरा महसूसते हुए
हर्फ़-हर्फ़, सफ़्हा-सफ़्हा
रोज़ यूँ पढ़ती हूँ तुम्हें
गोया
तुम हो इक क़ुरान
और मैं बे-नूर आबिदा कोई
देख नहीं सकती तुम्हें, लेकिन
चूम के महसूस करती हूँ
तुम्हारी पेशानी की आयतें कभी
और कभी ताबीज़ सा तुझे
गले में बाँध लेती हूँ...

-- ऋचा

26 comments:

  1. बहुत अच्छा लिखा है आपने... मेरे जैसे उर्दू ज़ुबान में तंग पाठकों की सुविधा के लिए कठिन उर्दू शब्दों पर माउस लाने से आने वाले अर्थ की सुविधा देकर आपने बहुत उपकार किया है.. वरना यह रचना पूरी तरह समझ नहीं आती

    हैपी ब्लॉगिंग

    ReplyDelete
  2. कुछ तो है इस कविता में, जो मन को छू गयी।

    ReplyDelete
  3. बहुत सुन्दर... फिजा वैस्से आज दिल्ली की भी कुछ बदली हुई है... बारिश हुई है... कहने वाले कहते हैं कि पवित्र दिन है आज छठ कि सुबह है इसलिए . मैं कहता हूँ होगा पवित्र दिन पर वजेह यह नहीं होगी... आसमान ने बूँद भेज कर धरती को चूम सलाम भेजा है.

    ReplyDelete
  4. थोड़ी अमृता सी ......थोड़े गुलज़ार से .....ओर पूरी ऋचा....

    ReplyDelete
  5. बहुत खूबसूरत नज़्म ....पाकीजा सी ..

    ReplyDelete
  6. इस बार तो हैरान कर दिया....गज़ब

    ReplyDelete
  7. abhi kal hi to padhaya tha...aaj post bhi kar diya...sachchi gulzaar hi avtarit hue hain...sahmat hoon Dr. Anuraag se Amrita ki bhi jhalak hai....Mood off tha padha to achcha laga ...sahi ja rahi ho dear

    ReplyDelete
  8. स्पर्श को शब्द दे दिये……………बेहतरीन शबद रचना।

    ReplyDelete
  9. शबद को शब्द पढा जाये

    ReplyDelete
  10. खुबसूरत अहसास ,अच्छी नज्म मुबारक हो

    ReplyDelete
  11. वाह, भावों का सुखद स्पर्श।

    ReplyDelete
  12. वाह ... क्या भाव पिरोये हैं आपने नज़्म में ... बहुत खूब ..

    ReplyDelete
  13. बहुत सुन्दर शब्द .. सुन्दर भाव ... सुन्दर रचना

    ReplyDelete
  14. badhiya hai..gulzar saab poori tarah haavi hain... wo ek nazm ... "quraan hathon me le ke nabeena ik namaji" is nazm ki poori chhaap dikh rahi hai ...

    ReplyDelete
  15. एहसास कि नदी गुनगुनाने लगी ... बहुत खूब likha है ...

    ReplyDelete
  16. सुन्दर शब्द और हल्का सा स्पर्श का एहसास

    ReplyDelete
  17. इतना खूबसूरत लिखने के पीछे गुलज़ार और फैज़ ही तो हैं :)
    बहुत सुन्दर लिखा है ऋचा जी आपने..

    ReplyDelete
  18. आज आपके एक और ब्लॉग पे पहली बार गया - फैज वाले ब्लॉग पे...मुझे पता ही नहीं था उसके बारे में... :O
    बहुत अच्छा लगा..कमाल के पोस्ट्स हैं उसमे...
    लेकिन एक बात, गूगल क्रोम से खोलने पे उसमे Malware detected आ रहा है..ज़रा देख लीजियेगा आप..

    ReplyDelete
  19. खुबसूरत रचना
    कभी यहाँ भी आये
    www.deepti09sharma.blogspot.com

    ReplyDelete
  20. kya khoob likha hai ji
    padhkar bahut der chup hi raha ..

    waah waah

    keep it up

    vijay
    kavitao ke man se ...
    pls visit my blog - poemsofvijay.blogspot.com

    ReplyDelete

दिल की गिरह खोल दो... चुप ना बैठो...