Thursday, July 5, 2012

तुम बिन आवे न चैन... रे साँवरिया...!



- मैं क्यों उसको फ़ोन करूँ ! उसे भी तो इल्म  होगा कल शब मौसम की पहली बारिश थी

- ये क्या बड़बड़ा रही हो ?

- तुम्हें क्या ?

- अरे बताओ तो...

- नहीं बताना... बातचीत बंद है तुमसे...

- ठीक है मत बताओ फिर...

- हाँ तो कहाँ बता रहे हैं... वैसे भी तुम्हें क्या फ़र्क पड़ता है हम बोलें या न बोलें...

- सो तो है :)

- ह्म्म्म... जाओ फिर काम करो अपना... क्यूँ बेकार में टाइम वेस्ट कर रहे हो...

- अच्छा... जाता हूँ... बाय...... बाय....... अब बाय का जवाब तो दे दो...

- क्यूँ... नहीं देंगे जवाब तो क्या नहीं जाओगे ?

- नहीं जाऊँगा तो तब भी... पर जवाब दे दोगी तो खुश हो के जाऊँगा... काम करने में मन लगेगा...

- ह्म्म्म... तुम्हें फिक्र है क्या हमारी ख़ुशी की... हम क्यूँ करें फिर...

- जाऊं फिर ?

- तुम्हारी मर्ज़ी...

- सच में जाऊं ?

- बोला न... तुम्हरी मर्ज़ी... मेरी मर्ज़ी का वैसे भी कब करते हो...

- हम्म... जा रहा हूँ फिर... बाय...

- रुको... वो मैकरोनी और कॉफी जो बनायी है उसका क्या होगा ? खा के जाओ...

- :)

- हँसो मत... रोक नहीं रहे हैं... खा के चले जाना... हमने भी नहीं खायी है अभी तक... बड़े मन से बनायी थी...

- :):):)

- बुरे हो सच में... बहुत बुरे... रोज़ लड़ते हो... रोज़ रुलाते हो... बुरा नहीं लगता तुम्हें...

- नहीं... मज़ा आता है तुम्हें गुस्सा दिलाने में... रुलाने में... :)

- हम्म... अच्छा सुनो... ये झगड़ा बरसात भर के लिये पोस्टपोन कर देते हैं... बारिशें तुम्हारे बिना बिलकुल अच्छी नहीं लगतीं...

- :)

- :)

- अच्छा अब तो बता दो... वो सब क्या था? वो पहली बारिश.. फ़ोन.. इल्म.. ???

- कुछ नहीं... बहुत बहुत बुरे हो तुम :):):)

- अरे बताओ तो...

- क्यूँ बतायें...

- ..........

- ..........



10 comments:

  1. रोचक .... झगड़ा बरसात भर मुल्तवी किया जाये

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  2. जिंदगी यूँ ही चलती रहे तो ......
    ताउम्र याद आने वाले लम्हे...!

    कुँवर जी,

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  3. बहुत बेहतरीन रचना....
    मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।

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  4. बारिशों में झगड़ना और फिर बूंदों के बीच आंसू बहाना और भीगते भीगते गले लग जाना क्या कहती हो ?

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  5. बस तस्वीर लगाकर आपने गडबड कर दी :)

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  6. स्कूल्स में एक एकांकी थी "तौलिए"...कुछ कुछ उसकी याद आ गयी ...
    बारिश में लड़ाई का भी अपना मजा है :)

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दिल की गिरह खोल दो... चुप ना बैठो...