बहुत ही ख़ुशनुमा सुबह थी... सारी रात हुई बारिश के बाद उजली, धुली हुई सी सुबह... हवा में हल्की नमी और बूंदों की ख़ुश्बू... पेड़, पौधे, पंछी सब ख़ुशी से चहचहाते हुए... एक ऐसी सुबह जिससे बाहें फैला के गले मिलने का दिल करे... ऐसी सुबह जो आपको आपके शहर से फिर प्यार करने पर मजबूर कर दे... और फिर हमारा शहर तो यूँ भी हमारी जान है... किसी शायर ने क्या ख़ूब कहा है हमारे लखनऊ के बारे में...
ये शहर रहा होगा शाइस्ता मिज़ाजों का
इस शहर के मलबों से गुलदान निकलते हैं
हुसैनाबाद दरवाज़ा |
तो सुबह सुबह हम भी चल दिये अपने शहर से मिलने... जैसा की पिछली एक पोस्ट में बताया था बड़े दिनों से मन हो रहा था पुराने लखनऊ घूमने का... तो एक रात पहले ही प्लान फाइनल हुआ और सुबह सवेरे ही हम निकल पड़े... हम, भाई और उसके दो दोस्त... क़रीब सात बजे हम घर से निकले... और सबसे पहले पहुँचे हुसैनाबाद बाज़ार... भाई के एक दोस्त को बहुत ज़ोर से भूख लगी थी बोला रात में भी खाना नहीं खाया... पहले नाश्ता करेंगे फिर कहीं चलेंगे :) तो वो लोग टूट पड़े पूड़ी सब्ज़ी पर और हमने उतनी देर में हुसैनाबाद बाज़ार की तस्वीरें लीं... हुसैनाबाद के बारे में बताते चलें कि नवाबों ने यहाँ बहुत सी इमारते बनवायीं जिसमें छोटा इमामबाड़ा (जहाँ हमें भी जाना था पर जा नहीं पाये), हुसैनाबाद बाज़ार, दो ख़ूबसूरत दरवाज़े, घंटा घर और सतखंडा प्रमुख हैं...
कुड़िया घाट |
नाश्ता करने के बाद हम पहुँचे कुड़िया घाट... १९९० में इस घाट का पुनर्निर्माण करवाया गया था... सुबह के शान्त माहौल में वहाँ गोमती नदी में बोटिंग करना एक अनोखा अनुभव था... माना जाता है की गोमती नदी गंगा से भी पुरानी है इसलिए इसे "आदि गंगा" भी कहा जाता है... गोमती नदी पर बना पक्का पुल या लाल पुल जिसे हार्डिंग ब्रिज भी कहते हैं बहुत सी फिल्मों में दिखाया गया है... अगर आप दिमाग़ पर थोड़ा सा ज़ोर डालें तो याद आएगा कि हाल ही में आयी तन्नु वेड्स मन्नू और इशकज़ादे में भी इसे दिखाया गया है... १९१४ में बना तकरीबन सौ साल पुराना वास्तुशिल्प की मिसाल ये पुल आज भी उसी शान से खड़ा है और रोज़ सैकड़ों वाहन आज भी इसके ऊपर से गुज़रते हैं...
पक्का पुल |
टीले वाली मस्जिद |
इसी पुल के एक सिरे पर स्थित है आलमगिरी मस्जिद जिसे हम टीले वाली मस्जिद के नाम से भी जानते हैं... इसका निर्माण औरंगज़ेब ने १५९० में करवाया था... इसके पास में ही बड़ा इमामबाड़ा या आसिफ़ी इमामबाड़ा (जिसके बारे में पिछली पोस्ट में भी बताया था) और रूमी दरवाज़ा हैं... बड़ा इमामबाड़ा जाना इस बार भी रह गया... पर उसका कोई गिला नहीं क्यूँकि हमने वो देखा जो शायद किस्मत से ही देखने को मिलता है... रूमी दरवाज़े के ऊपर से पुराने लखनऊ का नज़ारा !!
बड़ा इमामबाड़ा और आसिफ़ी मस्जिद |
रूमी दरवाज़ा |
रूमी दरवाज़े की उपरी मंज़िलें |
ख़ैर वहाँ से निकले तो क़रीब १०.१५ हो रहा था... अब तक हमें भी भूख लग आयी थी थोड़ी थोड़ी और बाक़ी सब को दुबारा से :) तो हम जा पहुँचे चौक... श्री की मशहूर लस्सी पीने और छोले भठूरे खाने... क़रीब २० मिनट के ब्रेक के बाद हम सब की एनर्जी फिर से रीचार्ज हो गई थी... अब सोचा गया कि आगे कहाँ जाएँ... धूप हो गई थी तो इमामबाड़ा जाने का किसी का मन नहीं हो रहा था... फिर तय हुआ की काकोरी चलते हैं... बेहता नदी का पुल देखने...
बेहता पुल के पास बना शिव मन्दिर |
मंदिर में दर्शन करने और पेड़ से आम तोड़ कर खाने के बाद हम लौटे अपने घर की ओर और क़रीब १ बजे हमारा उस दिन का लखनऊ भ्रमण पूरा हुआ... अब अगली बार पक्के से आप सब को इमामबाड़ा घुमाना है... जल्द ही चलते हैं फिर... ऐसी ही किसी फ़ुर्सत वाली सुबह :)
तब तक के लिये बस इतना कहना है अपने लखनऊ के भाई बंधुओं से कि बुरा लगता है तेज़ी से बदलती जा रही लखनऊ की फिज़ा को देख कर... सारी दुनिया जिसकी तमीज़ और तहज़ीब की कायल है, अवध की वो संस्कृति हमारी ही धरोहर है और हमें ही उसे बनाए रखना है और सँवार कर आगे आने वाली पुश्तों तक भी पहुँचाना है... आइये मिल कर इस संस्कृति को कायम रखते हैं जिससे आगे आने वाली पुश्तें भी शान से कह सकें... मुस्कुराइए कि आप लखनऊ में हैं !
(ऑडियो साभार : रेडियो मिर्ची एफ एम चैनल)
कुछ और तस्वीरें --
हुसैनाबाद घंटा घर |
कुड़िया घाट |
गोमती नदी |
रिफ्लेक्शन ! |
आइसोलेटेड ! |
माझी बगैर नैया |
लाल पुल के नीचे से गुज़रते हुए |
लाल पुल |
बड़े इमामबाड़े का मुख्य दरवाज़ा |
रूमी दरवाज़े से दिखती गोमती नदी |
हुसैनाबाद दरवाज़ा, दाहिनी ओर सतखंडा और घंटा घर |
बड़े इमामबाड़े में स्थित आसिफ़ी मस्जिद |
बड़े इमामबाड़े का भीतरी दरवाज़ा |
बड़ा इमामबाड़ा |
रूमी दरवाज़े से दिखता बड़ा इमामबाड़ा |
रूमी दरवाज़े से दिखता बड़ा इमामबाड़ा |
रूमी दरवाज़े से दिखती आसिफ़ी मस्जिद की मीनारें |
रूमी दरवाज़े के भीतर बने दरवाज़े |
रूमी दरवाज़ा (पीछे से) |
बेहता नदी का पुल |
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