Sunday, June 3, 2012

तुम्हारी यादों का केलाइडोस्कोप !



कल रात तुम्हारी बेशुमार यादें बिखरी पड़ी थीं बिस्तर पर... के जैसे केलाइडोस्कोप में रंग बिखेरते काँच के छोटे-छोटे रंग-बिरंगे टुकड़े... जिस ओर भी करवट लेती तुम्हारी याद का एक टुकड़ा खिलखिला के बिखर जाता मेरे आस पास... और मैं मुस्कुराती हुई हाथ बढ़ा के जैसे ही छूने को होती उसे तो दूसरी याद आ के पहली वाली का हाथ पकड़ के भाग जाती... तुम्हारी यादें भी ना बिलकुल तुम्हारी तरह ही हैं... बहुत तंग करती हैं मुझे... दुष्ट... शरीर... पर बेहद प्यारी... किसी छोटे बच्चे कि शरारतों जैसी...

ये यादें भी ना बड़ी बातूनी होती हैं... तुम हो कि कुछ बोलते नहीं और वो हैं कि चुप नहीं होतीं एक बार शुरू हो जाती हैं तो... ये तुम्हारी यादें बिलकुल मुझ पर गई हैं :) रात के बीते पहर ऐसे घेर के बैठी थीं मुझे कि गर कोई कमरे में आ जाता उस वक़्त तो चचा ग़ालिब की "छुपाये न बने" और "बताये न बने" वाली स्थिति हो जाती :) हँस लो हँस लो... सबका एक दिन आता है... किसी दिन तुमको आ के घेरेंगी मेरी यादें तो हम भी ऐसे ही हँसेंगे... हुंह !

पता है कल रात हमने ढेर सारी बातें करीं... यादों ने और मैंने... तुम्हारी यादें उन तमाम भूली बिसरी गलियों से होते हुए जाने सपनों के कौन से शहर ले गयीं थीं जहाँ बस हम दोनों थे... और चारों तरफ़ पीले रंग के फूल खिले थे... जैसे सूरज से सारी रौशनी चुरा लाये हों... एक अजीब सी मदहोश कर देने वाली गंध बिखरी थी सारी फिज़ा में... बड़ी जानी पहचानी सी लगी थी वो महक... जैसे जन्मों से उसे जानती हूँ... बहुत सोचा तो याद आया वो जब पहली बार तुम्हें गले लगाया था न, वैसी ही महक बिखरी थी फिज़ा में तब भी...

जानते हो आज सुबह सुबह तुम्हें सपने में देखा... तब से मुस्कुराती हुई घूम रही हूँ सारे घर में... गोया कोई खोयी हुई दौलत मिल गई हो... गहरे हरे रंग कि शर्ट में बड़े प्यारे लग रहे थे तुम... आमतौर पर मुझे वो रंग ज़रा भी नहीं भाता पर जब से तुम्हें देखा है उसमें, मेरा फ़ेवरेट हो गया है... बिलकुल वो ही शर्ट ढूंढ़ के लानी है तुम्हारे लिये... जानती हूँ अब बोलोगे "बिलकुल पागल हो तुम"... बोला ना ? और अब हँस रहे हो... पता था मुझे :)

तुम्हारी सबसे बड़ी ख़ासियत पता है क्या है ? कि तुम बेहद आम हो... तुम में हर वो कमी है जो तुम्हें एक ख़ास इन्सान बनाती है... तुम कोई कैसानोवा नहीं हो... इतने ख़ूबसूरत कि जिसे देखते ही लड़कियां पागल हो जाएँ... तुम मेरी ही तरह एकदम साधारण हो... बेहद सौम्य... और इसीलिए मुझे सबसे ज़्यादा पसंद हो... क्यूँकि तुम्हारी ख़ूबसूरती तुम्हारे दिल में बसती है... मेरी आँखों से देखना कभी ख़ुद को... ख़ुद अपने आप पे दिल ना आ जाये तो मेरा नाम बदल देना... वैसे वो तो तुमने पहले ही बदल दिया है... तुम्हारे मुँह से कभी अपना नाम सुनती हूँ तो कितना पराया सा लगता है ये दुनियावी नाम... सुनो, तुम मुझे मेरे नाम से मत पुकारा करो !


4 comments:

  1. कभी सामान्य का सौन्दर्य अनुप्राणित कर जाता है।

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  2. प्रिय जैसा है वैसा ही खास है। मुझे भी कुछ-कुछ इसका आभास है।:)

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  3. एक एक लफ्ज़ से रूमानियत रिस सी रही है...................

    अच्छा लगा आपको पढ़ना....
    लिखते रहिये.......

    अनु

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दिल की गिरह खोल दो... चुप ना बैठो...