Monday, October 18, 2010

लोग ग़ुस्से में बम नहीं बनते !!!


बस, हवा ही भरी है गोलों में
सुई चुभ जाए तो पिचक जाएँ

लोग ग़ुस्से में बम नहीं बनते !

-- गुलज़ार

ग़ुस्सा... प्यार ही की तरह हमारे व्यक्तित्व का एक हिस्सा होता है... बुरा ही सही, पर होता है... हर किसी में... कितनी बार ऐसा होता है कि हम जाने-अनजाने, अपने अपनों को कुछ ऐसा बोल देते हैं ग़ुस्से में, जो उन्हें तो तकलीफ़ देता ही है साथ ही ख़ुद हमें भी उतनी ही चोट पहुंचाता है... पर वो कहते हैं ना कमान से निकला हुआ तीर और मुँह से निकले हुए शब्द कभी वापस नहीं आ पाते... वो तो एक बार निकलने के बाद बस चोट ही पहुँचाते हैं... कोई "undo" कमांड नहीं चलता उनपे... और आप फिर चाह कर भी कुछ नहीं कर पाते सिवाय अफ़सोस के, कि आपने ऐसा क्यूँ कहा...

ऐसा क्यूँ होता है कि आप जिसे सबसे ज़्यादा प्यार करते हैं उसे ही सबसे ज़्यादा चोट पहुँचाते हैं जाने-अनजाने, ना चाहते हुए भी... फिर चाहे वो हमारे माँ-बाबा हों, भाई-बहन हों, यार-दोस्त हों या कोई भी अपना, जिसे आप दिल से सिर्फ़ और सिर्फ़ प्यार करते हैं... जिसका बुरा करना तो दूर की बात है, आप उसके बारे में बुरा सोच भी नहीं सकते... पर इन्सान हैं तो ग़लतियाँ करना भी लाज़मी है... परफेक्ट तो हो नहीं सकते... हम ग़लतियाँ भी करते हैं और उनका एहसास होने पर पछतावा भी...

पर ये सब तब होता है जब ग़ुस्सा कर के अपना और सामने वाले का, दोनों का ही मूड ख़राब कर चुके होते हैं... उस वक़्त तो ग़ुस्से में कुछ समझ ही नहीं आता सही-ग़लत... पता है ये ग़ुस्सा बहुत बुरा होता है... आपसे सारे अच्छे शब्द छीन लेता है और सारे बुरे और कड़वे शब्द आपको दे जाता है... जिन्हें बोलने का आपको बाद में अफ़सोस होता है... इसलिए ग़ुस्से में हमेशा शान्त रहना चाहिये... हम भी ऐसा ही करते हैं अक्सर... पर कभी कभी जाने कहाँ से ये कड़वे शब्द आ ही जाते हैं... देखो ज़रा अभी दिमाग़ शान्त है तो हम भी कैसी समझदारी की बातें कर रहे हैं :) ग़ुस्सा सच में बड़ा बुरा होता है...

अब ग़लती तो होती है हमसे, तो उसके लिये माफ़ी माँगना भी बनता है, पर माफ़ी जब भी माँगे दिल से माँगे... सिर्फ़ औपचारिकतावश "सॉरी" बोल देना माफ़ी माँगना नहीं होता... वो तो सिर्फ़ अपने लिये होता है... ख़ुद का अपराधबोध दूर करने के लिये... कोशिश करें कि जिस वजह से सामने वाले का दिल दुखा वो काम ही ना करें दोबारा... और एक बात तो है हमें पता है भले ही हम कितना भी नाराज़ हो जाएँ या ग़ुस्सा कर लें... हमारे अपने हमेशा हमारे साथ रहते हैं... भले सामने से ऐसा दिखाएँ ना पर दिल से तो साथ ही होते हैं...

पर जैसे ही आपको अपनी ग़लती का एहसास हो... माफ़ी मांगने में कभी देर मत करिये... झिझकिये मत... क्यूँकि कई बार ज़िन्दगी हमें ये मौका भी नहीं देती...


बस इक लम्हे का झगड़ा था
दर-ओ-दीवार पे ऐसे छनाके से गिरी आवाज़
जैसे कांच गिरता है
हर इक शै में गयीं उड़ती हुई, जलती हुई किर्चें !
नज़र में, बात में, लहजे में,
सोच और सांस के अन्दर...
लहू होना था इक रिश्ते का,
सो वो हो गया उस दिन !
उसी आवाज़ के टुकड़े उठा के फ़र्श से उस शब,
किसी ने काट लीं नब्ज़ें
न की आवाज़ तक कुछ भी,
कि कोई जाग न जाये !!

-- गुलज़ार


9 comments:

  1. सिर्फ़ औपचारिकतावश "सॉरी" बोल देना माफ़ी माँगना नहीं होता... वो तो सिर्फ़ अपने लिये होता है... ख़ुद का अपराधबोध दूर करने के लिये...

    सही कहा आपने... इतनी बारीकी से अहसासों पर गौर करती हुईं प्रविष्ठियां केवल इसी ब्लॉग पर देखी जा सकती हैं..

    हैपी ब्लॉगिंग

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  2. माफ़ी मांगने में कभी भी नहीं हिचकना चाहिए, और गुस्से पर अगर काबू है तो पूरी दुनिया जीत सकते हैं हम..
    बहुत ही ख़ूबसूरत रचना..
    इस बार मेरे नए ब्लॉग पर हैं सुनहरी यादें...
    एक छोटा सा प्रयास है उम्मीद है आप जरूर बढ़ावा dengi..
    कृपया जरूर आएँ...

    सुनहरी यादें ....

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  3. AREY YAAR....KAL HI YE WALA BUKHAR PURE KHUMAAR PAR THA....LEKIN SORRY NAHI BOL PAAYENGE...APNE JO HAIN....ACHCHI LAGI POST....LEKIN GUESSE MEIN YE SAARE ACHCHI BAATEIN NADARAT HO JAATI HAIN....Bahut gyaan de rahi ho dear...ab jab gussa aaya na tumhe yahi padhwayenge :-)

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  4. गुलज़ार साहब की नज़्म बड़ी भली है.....क्या कहने :-)

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  5. NTPC में पढ़ा था ... की माफ़ी मांगने का मतलब मैं छोटा हूँ, वो बड़े हैं, मैं गलत हूँ, वो सही हैं... इन सबसे ऊपर उठकर करके यह सोचना होना चाहिए की हमारे साथ उनके रिश्ते महत्वपूर्ण हैं.

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  6. गलती टाँगे रहने से सब स्याह हो जाता है, तुरन्त उतार फेकिये।

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  7. @ आशीष जी... धन्यवाद... ये एहसासों की बारीकियाँ ही तो हैं जो किसी भी रिश्ते को ख़ूबसूरत बना देती हैं... बाक़ी हम कोई राइटर तो हैं नहीं बस जो ज़िन्दगी से सीखते, समझते रहते हैं यहाँ आप सब के साथ बाँट लेते हैं... आपको पसंद आता है ये हमारी ख़ुशनसीबी है :)

    @ शेखर सुमन... शुक्रिया !

    @ प्रिया... ज़रा ये लाइन दोबारा से पढ़ो... "देखो ज़रा अभी दिमाग़ शान्त है तो हम भी कैसी समझदारी की बातें कर रहे हैं :)" ग़ुस्से में दिमाग़ कब काम करता है जो ये पढ़ने की नौबत आएगी :) ख़ैर... ज्ञान वान नहीं बाँट रहे... काश की होता थोड़ा सा :) ... वैसे बहुत से लोगों को ऐसा लगता है अक्सर... पर यहाँ इस ब्लॉग पर हम सिर्फ़ वो बातें या ज़िन्दगी के प्रति उस नज़रिए को लिखते हैं जैसा हमें लगता है की होना चाहिये... और हमें लगता है की हमें ऐसा करना चाहिये इसका मतलब ये नहीं कि हम हमेशा ऐसा करते हैं... हाँ चाहते ज़रूर हैं कि ऐसा कर पायें... कोशिश भी करते हैं... कभी सफ़ल भी हो जाते हैं, कभी फेल भी :) पर यही तो ज़िन्दगी है !!!

    @ अनिल... गुलज़ार साब तो बस गुलज़ार साब है... अब और क्या कहें उनके बारे में :)

    @ सागर... हम यहाँ उन दुनियावी रिश्तों के बारे में बात नहीं कर रहे थे जिनके बारे में शायद आपने पढ़ा... अपनों से माफ़ी माँगने से कभी कोई छोटा नहीं होता... ये तो हमें तय करना होता है अहम बड़ा या अपने... और जहाँ तक रिश्तों की बात है तो हमारा भी यही मानना है कि रिश्ते इन सब छोटी-छोटी बातों से, ग़ुस्से से, नाराज़गी से, अहम से... सबसे ऊपर होते हैं...

    @ प्रवीण जी... सही कह रहे हैं आप... क्यूँ ये बेकार की चीज़ें टाँगे रहें और क्यूँ ये ज़िन्दगी, ये रिश्ते सब स्याह करें... छोटी सी ज़िन्दगी है, हँसी ख़ुशी कट जाये तो क्या बुरा है :)

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  8. सही कहा कि गुस्से में चुप रह जाना ही सबसे सही इलाज है | और वास्तव में हम सभी ज्यादातर सिर्फ कहने के लिए ही सॉरी कहते है दिल से नहीं कहते है |

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  9. ग़ुस्सा... प्यार ही की तरह हमारे व्यक्तित्व का एक हिस्सा होता है... बुरा ही सही, पर होता है... हर किसी में... bina gusse ke pyaar badhta bhi to nahi

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दिल की गिरह खोल दो... चुप ना बैठो...