पिछले तकरीबन डेढ़ सालों की ब्लॉगिंग में ना जाने कितनी ही बार गुलज़ार साहब की नज्में आप सब के साथ बांटी... अब तक तो हमारा गुलज़ार प्रेम जग ज़ाहिर हो चुका है :) ख़ैर... अभी हाल ही में एक ख़ज़ाना हाथ लगा तो सोचा हमारी तरह ही ना जाने कितने गुलज़ार साहब के मुरीद हैं तो उन सब के साथ उस ख़ज़ाने को साँझा कर लूँ...
अब आप सोच रहे होंगे की ये किस ख़ज़ाने की बात कर रहे हैं हम... तो सुनिये... हुआ यूँ कि एक दिन यूँ ही गूगलिंग कर रहे थे :) अभी कुछ दिन पहले ही और ये हाथ लग गया... कहने को तो ये वर्ष 2010 का कैलेंडर है... अब आप सोचेंगे की यहाँ साल ख़त्म होने को आया और हम अब कैलेंडर की बात कर रहे हैं और उसे पा कर इतने ख़ुश हो रहे हैं... तो भईया राज़ की बात ये है की उस कैलेंडर में हर महीने के लिये गुलज़ार साहब ने एक ख़ास नज़्म लिखी है... जो हमने तो पहली बार ही पढ़ी हैं... कुछ एक तो बस कमाल हैं... बेहद ख़ूबसूरत तरीके से बेजान चीज़ों में जान फूंकी है गुलज़ार साब ने...
ये कैलेंडर मुझे मिला फोटोग्राफर विवेक रानाडे की वेबसाइट पर... चुराया नहीं है "डाउनलोड फ्री स्टफ़" में मिला :) इस कैलेंडर के लिये नज्में जैसा हमने अभी बताया लिखी हैं गुलज़ार साब ने, फोटोग्राफी है विवेक जी की और उन नज़्मों को ख़ूबसूरत तरीके से सजा के लिखा है कलिग्रफर अच्युत पलव जी ने...
लीजिये आप भी पढ़िये... देखिये... महसूस कीजिये और संजो लीजिये...
कैलेंडर की शुरुआत होती है गुलज़ार साहब की इस नज़्म से -
ये भी साल जमा कर लो २०१०
अकबर का लोटा रखा है शीशे की अलमारी में
रना के "चेतक" घोड़े की एक लगाम
जैमल सिंह पर जिस बंदूक से अकबर ने
दाग़ी थी गोली
रखी है !
शिवाजी के हाथ का कब्जा
"त्याग राज" की चौकी, जिस पर बैठ के रोज़
रियाज़ किया करता था वो
"थुन्चन" की लोहे की कलम है
और खड़ाऊँ "तुलसीदास" की
"खिलजी" की पगड़ी का कुल्ला...
जिन में जान थी, उन सब का देहांत हुआ
जो चीज़ें बेजान थीं, अब तक ज़िन्दा हैं !!
-- गुलज़ार
अकबर का लोटा रखा है शीशे की अलमारी में
रना के "चेतक" घोड़े की एक लगाम
जैमल सिंह पर जिस बंदूक से अकबर ने
दाग़ी थी गोली
रखी है !
शिवाजी के हाथ का कब्जा
"त्याग राज" की चौकी, जिस पर बैठ के रोज़
रियाज़ किया करता था वो
"थुन्चन" की लोहे की कलम है
और खड़ाऊँ "तुलसीदास" की
"खिलजी" की पगड़ी का कुल्ला...
जिन में जान थी, उन सब का देहांत हुआ
जो चीज़ें बेजान थीं, अब तक ज़िन्दा हैं !!
-- गुलज़ार
(कैलेंडर के सभी फोटो को बड़े साइज़ में देखने के लिये फोटो पर क्लिक करें और पॉप-अप विंडो को अलाऊ कर दें)
जनवरी -
(कैमरा)
सर के बल आते थे
तस्वीर खिंचाने हम से
मुँह घुमा लेते हैं अब
सारे ज़माने हम से
फ़रवरी -
(छाता)
सर पे रखते थे
जहाँ धूप थी, बारिश थी
घर पे देहलीज़ के बाहर ही
मुझे छोड़ दिया
(छाता)
सर पे रखते थे
जहाँ धूप थी, बारिश थी
घर पे देहलीज़ के बाहर ही
मुझे छोड़ दिया
मार्च -
(शीशा)
कुछ नज़र आता नहीं
इस बात का ग़म है
अब हमारी आँख में भी
रौशनी कम है
अप्रैल -
(अलार्म घड़ी)
कोई आया ही नहीं
कितना बुलाया हमने
उम्र भर एक ज़माने को
जगाया हमने
(अलार्म घड़ी)
कोई आया ही नहीं
कितना बुलाया हमने
उम्र भर एक ज़माने को
जगाया हमने
मई -
(बाइस्कोप)
वो सुरैया और नर्गिस का ज़माना
सस्ते दिन थे, एक शो का चार आना
अब न सहगल है, न सहगल सा कोई
देखना क्या और अब किस को दिखाना
जून -
(सर्च लाइट)
दिल दहल जाता है
अब भी शाम को
आठ दस की जब कभी
गाड़ी गुज़रती है
(सर्च लाइट)
दिल दहल जाता है
अब भी शाम को
आठ दस की जब कभी
गाड़ी गुज़रती है
जुलाई -
(टाइप राइटर)
हर सनीचर,
जो तुम्हें लिखता था दफ़्तर से
याद आते हैं वो
सारे ख़त मुझे
अगस्त -
(रेडियो)
नाम गुम हो जायेगा,
चेहरा ये बदल जायेगा
मेरी आवाज़ ही पहचान है,
गर याद रहे
(रेडियो)
नाम गुम हो जायेगा,
चेहरा ये बदल जायेगा
मेरी आवाज़ ही पहचान है,
गर याद रहे
सितम्बर -
(ताला)
सदियों से पहनी रस्मों को
तोड़ तो सकते हो
इन तालों को चाभी से
तुम खोल नहीं सकते !
अक्टूबर -
(पानदान)
मुँह में जो बच गया था,
वो सामान भी गया
ख़ानदान की निशानी,
पानदान भी गया
(पानदान)
मुँह में जो बच गया था,
वो सामान भी गया
ख़ानदान की निशानी,
पानदान भी गया
नवम्बर -
(टेलीफ़ोन)
हम को हटा के जब से
नई नस्लें आई हैं
आवाज़ भी बदल गई,
चेहरे के साथ साथ
दिसम्बर -
(माइक)
मेरे मुँह न लगना
मैं लोगों से कह दूँगा
तुम बोलोगे तो मैं
तुम से ऊँचा बोलूँगा
(माइक)
मेरे मुँह न लगना
मैं लोगों से कह दूँगा
तुम बोलोगे तो मैं
तुम से ऊँचा बोलूँगा
इस कैलेंडर का डाउनलोड लिंक है - http://vivekranade.com/free-downloads.htm
* सभी फोटो साभार vivekranade.com