कुछ लम्हे कभी ख़त्म नहीं होते... हमारी यादों में ठहर जाते हैं, "फ्रीज़" हो जाते हैं... यादों की झोली से निकाले हुए ऐसे ही कुछ ठहरे हुए लम्हे...
Saturday, June 26, 2010
तन्हां सी शाम
सूरज की सिन्दूरी बिंदी लगाये
एक तन्हां सी शाम आयी थी आज
कुछ ख़ामोश सी थी
उस सिन्दूरी आभा के पीछे
यूँ लगा इक मौन उदासी छिपी है
कुछ कहना था उसे शायद
पर किस से कहे
उगते को तो सभी सलाम करते हैं
डूबते की कौन सुने
पंछी भी अपने अपने
घरौंदों में लौटने की जल्दी में हैं
किसी के भी पास वक़्त नहीं है
जो दो पल उसके पास ठहरे
जाने क्यूँ उसे देखा तो
क़दम ख़ुद-ब-ख़ुद थम गये
बहुत अपनी सी लगी वो
शायद दोनों ही तन्हां थे
कुछ देर साथ बैठे हम
कुछ ख़ामोशियाँ बांटी
मन कुछ हल्का सा महसूस हुआ
शायद दिल की तरह
तन्हाई को भी तन्हाई से राह होती है
जब उठ के आने लगी मैं
तो मुझे गले लगा के बोली
कभी कभी आ जाया करो यूँ ही
कुछ समय साथ बिताएंगे
अच्छा लगता है किसी का यूँ साथ होना...
-- ऋचा
bahut hi achchi shaam aur achche khyaal..
ReplyDeletepic bhi b'ful hai..
happy blogging
Nihayat bhaav poorn rachna! Laga,jaise mai swayam se batiya rahi hun!
ReplyDeleteसंग किसी का मिल तो जाता,
ReplyDeleteकाट रहा आकाश खुला सा ।
मुँह बाये सारा दिन दिखता,
दिशाशून्य अवसाद घुला सा ।
रिश्ते............�.............हाँ... वह ख़ास हो मेरे लिये !!!
ReplyDeleteपंकज का ये कमेन्ट ई-मेल से मिला -
ReplyDelete"अच्छा किया जो अकेली शाम के साथ थोड़ी देर बैठी... उसे भी अच्छा लगा होगा.. शायद दोनों एक दुसरे के पूरक हो जाएँ..."
जब उठ के आने लगी मैं
ReplyDeleteतो मुझे गले लगा के बोली
कभी कभी आ जाया करो यूँ ही
कुछ समय साथ बिताएंगे
अच्छा लगता है किसी का यूँ साथ होना...
ab tanha kahan hai shaam....Saath mila hai na use tumhara...fir chali jaya karo na uske pass :-)