Monday, April 26, 2010

बातें कुछ अनकही सी...


अभी हाल ही में एक मोबाइल कंपनी का विज्ञापन आया था "बात करने से ही बात बनती है"... आज बैठे बैठे यूँ ही कुछ सोच रही थी तो अचानक वो विज्ञापन याद आ गया... पर सोचा क्या हमेशा ऐसा ही होता है? ये सच है की बातचीत दो लोगों को आपस में जोड़े रखती हैं... उन्हें एक दूसरे जो जानने का, समझने का मौका देती हैं... एक दूसरे के करीब आने का ज़रिया बनती हैं... पर हमेशा ऐसा नहीं होता... कभी कभी आप आपस में खामोशियाँ भी बांटते हैं... ख़ामोशी को ख़ामोशी से बात करते सुना है कभी ? उसमे भी एक अजीब सा सुकून होता है... कभी आज़माइयेगा इसे भी...

ये बातें भी अजीब होती हैं... कभी कभी तो ये बातें बिलकुल अंतहीन हो जाती हैं... आप किसी दोस्त से बात करो और कब एक बात से दूसरी बात और दूसरी से तीसरी निकलती चली जाती है और आप घंटों बातें करते रहते हैं... वक़्त का पता ही नहीं चलता... बिना कुछ सोचे समझे किसी भी एक विषय पर बातचीत शुरू हो जाती है और बस शुरू हो जाता है कभी ना ख़त्म होने वाली बातों का सिलसिला... हँसी, ठिठोली... रूठने, मनाने... सुनने, सुनाने का सिलसिला...

फिर कितनी ही बार ऐसा भी होता है की वही दो लोग... उतनी ही अच्छी दोस्ती... उतना ही करीबी रिश्ता... वही एहसास... वही जज़्बात... पर जब मिलते हैं "हाय... हलो... कैसे हो... और बताओ" के आगे बात बढ़ती ही नहीं... बस फ़ैल जाती है इक गूंगी मौन ख़ामोशी... एक चुप... पता नहीं क्यूँ... जबकि आपके पास कितना कुछ होता है बोलने के लिये, बताने के लिये, बात करने के लिये... बस शायद मन नहीं होता कुछ भी कहने सुनने का...


ऐसा क्यूँ होता है
वही मैं, वही तुम, वही जज़्बात
मगर
ना जाने क्यूँ
कभी कभी
बातें अथाह सागर सी होती हैं
विशाल, विस्तृत
कभी ना ख़त्म होने वाली
और कभी
इतनी सीमित
मुट्ठी भर रेत जैसे
मुट्ठी खोलो और
एक ही पल में बस
फिसल के गिर जाती हैं
बेजान साहिल पर...

-- ऋचा

8 comments:

  1. Yah aapka niji anubhav hokar bhi sabhi ka hai..bahut sundar!

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  2. जी बहुत बढ़िया प्रस्तुति आपकी!

    "हम तो कर रहे थे बात अपने हालात की,

    और देखो बात ही बात में क्या बात निकल आई है!"



    कुंवर जी,

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  3. aajkal kuchh apna haal aisa hi hai....

    panktiyaan achchhi hain....sach much !

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  4. आप भी वही, तभी तो मुठ्ठी भर बातें भी विस्तार ले लेती हैं

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  5. पता है ऋचा! हमने क्या सोचा .....हमारे बीच जों साहिल पे गिरा उसे उठा लेते हैं ..... कल जब हम दूर होंगे तब वो रेत जरिया होगी इन यादों के विस्तार का :-)

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  6. :) वाह.. आज कुछ ऐसा ही लिखने वाला था मै.. खामोशी की बाते.. खामोशी का शोर.. बह गया.. डूब गया.. फ़ीड रीडर मे ऎड हो गयी सरकार..

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दिल की गिरह खोल दो... चुप ना बैठो...