Friday, November 13, 2009

"तुम" और "मैं"

दो चेहरों से जीना भी कैसी मजबूरी है
जितना जो नज़दीक है उससे उतनी दूरी है
-- निदा फाज़ली

आज निदा जी की लिखी हुई ये ग़ज़ल सुन रहे थे "जीवन क्या है चलता फिरता एक खिलौना है"... वैसे तो पूरी ग़ज़ल ही बेहतरीन हैं पर ये दो पंक्तियाँ दिल को छू सी गयीं... सोचा सच ही तो है... हम सब ऐसे ही हैं... तमाम उम्र दो चेहरों के साथ जीते रहते हैं... एक चेहरा जो बनावटी है, दुनिया को दिखाने के लिये और एक वो जो सच है, जैसे आप वास्तव में हैं... ये बनावटी चेहरा वो है जैसा ये दुनिया हमें देखना चाहती है, जैसा हमारे अपने हमें देखना चाहते हैं... एकदम "परफेक्ट"... जो हम ना हैं और ना कभी हो सकते हैं... "परफेक्ट" हो गए तो फिर इंसान कहाँ रहेंगे भगवान नहीं बन जायेंगे... पर फिर भी जाने अनजाने, ना चाहते हुए भी हम वैसे ही बनते चले जाते हैं... बनावटी... शायद दुनिया को या अपनों को खुश रखने के लिये... या फिर इसलिए की सच कोई देखना या समझना ही नहीं चाहता... पता नहीं क्यूँ... पर ना ये ज़िन्दगी की भागदौड़ हमें कुछ सोचने का मौका देती है और ना लोगों के पास हमें समझने की फ़ुर्सत है...
इस बनावटी चेहरे के साथ ज़िन्दगी यूँ ही अपने ही वेग से दौड़ती चली जाती है और उसके साथ हम और आप भी... इस बनावट के हम ख़ुद भी इतने आदी हो जाते हैं की अपना असली चेहरा हमें भी याद नहीं रहता... हमारी इच्छाएं, हमारी ख्वाहिशें, हमारी पसंद-नापसंद, सब उस चेहरे के साथ हमारे दिल के किसी कोने में दब जाती हैं, खो जाती हैं... पर ज़रा सोचिये इस भागती दौड़ती ज़िन्दगी में अचानक से कभी ब्रेक लग जाये तो ?? कोई गर्मी की चिलचिलाती दोपहर में ठंडी हवा के झोंके सा आये और आपका हाथ थाम के अपने साथ ही उड़ा ले जाये सपनों के एक ऐसे संसार में जहाँ कोई बनावट नहीं... जहाँ आप "आप" हों... वो सारी इच्छाएं, वो सारी ख्वाहिशें और आपका वो कुछ मासूम सा, सच्चा, खूबसूरत सा चेहरा एक बार फिर दिल के उस कोने से निकल कर बाहर आ जाये... आप एक बार फिर अपने आप से मिलें... देखा सोच कर ही आपके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आ गयी... है ना ?
अब आप सोच रहे होगे की ऋचा तो हमेशा सपनों में ही जीती है... ये सब सपनों की बातें हैं... पागलपन है... हक़ीकत में किसे फुर्सत है आजकल जो अपना काम धाम छोड़ कर आपको आपसे मिलवाये... सच भी है... किसे फुर्सत है... क्या आपको है ? अच्छा ज़रा सोच के बताइये आखिरी बार कब आपने अपने सबसे अच्छे दोस्त के साथ बैठ कर फुर्सत से बात की है ? या यूँ ही बिना वजह, बिना किसी काम उससे मिलने गए हों ? सिर्फ़ उसके साथ बैठ कर चाय काफ़ी पी हो बिना कुछ बोले पर फिर भी बहुत सुकून मिला हो ? याद नहीं आ रहा ना... अरे तो देर किस बात की आज ही जाइये... थोड़ा सा समय अपने लिये निकालिए और थोड़ा अपने दोस्त के लिये... ये बनावटी चेहरा ख़ुद-ब-ख़ुद उतर जाएगा और आपको वही अपना भोला-भाला मासूम चेहरा वापस मिल जाएगा... चाहे कुछ लम्हों के लिये ही सही... अपने आप से मिलने के लिये कुछ पल तो निकाले जा ही सकते हैं... तो हो जाये एक "अपॉइंटमेंट" ख़ुद के साथ !!!


आओ चलें सपनों के जहाँ में
जहाँ न बनावट का पुलिंदा
न झूठ की गठरी

जहाँ तुम "तुम" हो
और मैं "मैं"
व्योम के पार, क्षितिज से परे

ढूंढें सिरे इन्द्रधनुष के
सुनें फूलों की हँसी
चहकें चिड़िया के साथ

चाँद की नाव में बैठ कर
पार करें बादलों की नदी
धुंध की चादर हटायें
खुशियों की धूप में नहायें

तितलियों से रंग चुरायें
रंगें ये बेरंग ज़िन्दगी
कुछ पल बच्चों से मासूम बनें

ख्वाहिशों के गुब्बारे
उड़ा दें खुले आसमान में
फिर दौड़ें पकड़ने के लिये

अब तुम "तुम" नहीं
मैं भी "मैं" नहीं
क्योंकि भीतर बसे हो "तुम"
और बाहर "मैं" हूँ

अपॉइंटमेंट ख़ुद के साथ
मिटा सकता है
"तुम" और "मैं" का यह
दिखावटी फ़र्क


-- ऋचा

15 comments:

  1. आत्म-साक्षात्कर और आत्म-मुलाक़ात! कंसेप्ट पसंद आया.. बहुत अच्छा लिखा आपने।

    हैपी ब्लॉगिंग

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  2. आओ पीछे लौट चलें......
    बहुत कुछ पाने की प्रत्याशा में
    हम घर से दूर हो गए !
    जाने कितनी प्रतीक्षित आँखें
    दीवारों से टिकी खड़ी हैं -
    चलो उनकी मुरझाई आंखों की चमक लौटा दें !
    सूने आँगन में धमाचौकड़ी मचा दें
    - आओ पीछे लौट चलें...........
    आगे बढ़ने की चाह में
    हम रोबोट हो गए
    दर्द समझना,स्पर्श देना भूल गए !
    ..............................
    दर्द तुम्हे भी होता है,
    दर्द हमें भी होता है,
    दर्द उन्हें भी होता है
    - बहुत लिया दर्द, अब पीछे लौट चलें..........
    पहले की तरह,
    रोटी मिल-बांटकर खाएँगे,
    एक कमरे में गद्दे बिछा
    इकठ्ठे सो जायेंगे ...
    कुछ मोहक सपने तुम देखना,
    कुछ हम देखेंगे -
    आओ पीछे लौट चलें................

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  3. Are yaar tum to poet banti ja rahi ho
    Good going, Keep it up..

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  4. Gazab yaar tum to shayira banti ja rahi ho.......Behtareen

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  5. khyalon ki is duniya mein swagat hai......"main" aur "TU" ke beech khud ko talashti ye rachna man mein sama gayi.....

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  6. Rashmiprabha ji vakai pichhe hi lautne ka man krta hai apki comment ko padhkar aur richa ji phir ek behtarin bhav ki ganga...Rachna ke liye apka abhar...

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  7. आप सबकी टिप्पणियों के लिये दिल से धन्यवाद ...
    @ रश्मि जी
    इन बेहद खूबसूरत पंक्तियों के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया रश्मि जी... सच उस निश्छल, मासूम बचपन में वापस लौट जाने का दिल करता है...

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  8. अपॉइंटमेंट ख़ुद के साथ
    मिटा सकता है
    "तुम" और "मैं" का यह
    दिखावटी फ़र्क..khud se appointment honi bhi chahye kabhi kabhi.....

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  9. खुद के लिए अगर किसी को फुर्सत है तो इस क्षण में दोस्तों के साथ से अच्छा कुछ भी नही हो सकता......
    ये सपने की नही हकीकत की बात है.........
    काश ये समय...... साथ ही वो दोस्त भी सबके पास हो......
    बेहतरीन लिखा है आपने ऋचा जी.....

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  10. मर्मस्पर्शी कविता, सच्चे प्यार में यह फर्क होना भी नहीं चाहिए।
    ------------------
    11वाँ राष्ट्रीय विज्ञान कथा सम्मेलन।
    गूगल की बेवफाई की कोई तो वजह होगी?

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  11. "ढूंढें सिरे इन्द्रधनुष के
    सुनें फूलों की हँसी
    चहकें चिड़िया के साथ"

    वाह, बहुत खूबसूरत ख्याल.. सिरो को ढूढना भी कितना खूबसूरत होगा न??

    "ख्वाहिशों के गुब्बारे
    उड़ा दें खुले आसमान में
    फिर दौड़ें पकड़ने के लिये"

    डाक्टर साहेब कहते है न कि दिल ख्वाहिशो का कारखाना है.. कमबख्त हर उम्र मे कुछ न कुछ गुब्बारे फ़ुलाता ही रहता है..

    "अपॉइंटमेंट ख़ुद के साथ
    मिटा सकता है
    "तुम" और "मैं" का यह
    दिखावटी फ़र्क"

    मैने भी कभी इस पर कुछ लिखा था :)

    चाहता हू एक दिन
    अपने साथ बैठू,
    एक कॉफ़ी हो और
    हम दोनो ढेर सारी बाते करे,
    हँसे, खिलखिलाये ….
    एक दूसरे को और जाने…

    बाकी

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  12. tumhari jab bhi post padhta hun to aksar kho jata hun....

    kabhi kabhi lagta hai ki tumse baatein kar raha hun

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दिल की गिरह खोल दो... चुप ना बैठो...