Thursday, May 14, 2009

लॉकेट


मुझको इतने से काम पे रख लो

जब भी सीने पे झूलता लॉकेट
उल्टा हो जाए तो मैं हाथों से
सीधा करता रहूँ उसको

मुझको इतने से काम पे रख लो

जब भी आवेज़ा उलझे बालों में
मुस्कुराके बस इतना सा कह दो
आह ! चुभता है ये अलग कर दो

मुझको इतने से काम पे रख लो

जब ग़रारे में पाँव फँस जाए
या दुपट्टा किवाड़ में अटके
एक नज़र देख लो तो काफ़ी है

मुझको इतने से काम पे रख लो

'प्लीज़' कह दो तो अच्छा है
लेकिन मुस्कुराने की शर्त पक्की है
मुस्कुराहट मुआवज़ा है मेरा

मुझको इतने से काम पे रख लो

-- गुलज़ार

Gulzar sa'ab ki is behad khoobsoorat nazm ko Suresh Wadekar ji ne apni reshmi aawaaz de kar chaar chaad laga diye hain, aap bhi suniye aur khud decide kariye...

2 comments:

  1. kamal hain Gulzaar saheb ka ye andaaz, aur jo Wadekar saheb ne is poetry ko awaaj di hain shayad unse behtar kuch aur ho hi nahi sakta tha. Thank you! once again for providing us this unparallel composition.

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दिल की गिरह खोल दो... चुप ना बैठो...