Friday, May 10, 2013

रहें न रहें हम महका करेंगे...!



वो सारे ख़त जो कभी हमने एक दूजे को लिखे थे... वो सारी बेवजह की बातें... वो साथ बिताये अनगिनत पल... वो हँसी वो खिलखिलाहट जो अब तलक गूंजा करती है यादों की पिछली गलियों में... वो सारी शरारतें वो अटखेलियाँ... वो रूठना मनाना वो हँसना रुलाना.... हर वो लम्हा जो बीत कर भी नहीं बीता... ठहर गया है दिल की ज़मीं पर... तुम्हारी यादों के सुर्ख धागे में लिपटे बीते लम्हों के वो सारे सूखे फूल जिनकी ख़ुश्बू मन की जाने कितनी तहों के नीचे महफूज़ है... उन्हें बड़े प्यार से सहेजा है यहाँ.. हर एक पल हर एक लम्हां... यहाँ इस वर्चुअल दुनिया में...

हमारे ख़्वाबों की... हमारी ख्वाहिशों की दुनिया.. ये हमारी वर्चुअल दुनिया... जिसने हमारे बीच कभी भी दूरी को आने नहीं दिया... मीलों दूर होते हुए भी हम एक दूसरे से हमेशा जुड़े रहे... साथ रहे.. पास रहे... कितनी ख़ूबसूरत दुनिया है न ये... याद है तुम कभी कहा करते थे ये दुनिया उस दुनिया से बहुत ख़ूबसूरत है हमें कभी यहाँ से जाने को मत कहना... हम यही रहेंगे हमेशा.. बस हम और तुम...

कभी सोचा है जान कल जब हम न होंगे तो हमारे इस वर्चुअल वजूद का क्या होगा... क्या वो वर्चुअल दुनिया की ख़लाओं में अकेले यूँ ही भटकता फिरेगा...  मेरे बाद तुम मुझसे कैसे जुड़े रह पाओगे... क्या होगा उन सारे ख़तों जो मेरे ईमेल खाते में अब भी जमा हैं... पिकासा अकाउंट में इकट्ठी करी उन सारी तस्वीरों का... चैट हिस्ट्री में जमा तुम्हारी मेरी बातों का... मेरी उन सारी ब्लॉग पोस्ट्स का जो तुम्हारी थीं तुम्हारे लिए थीं... तुम्हारी याद कि उन सारी चमकती गिन्नियों का जो इस मेरे गूगल अकाउंट की गुल्लक में जमा हैं... मेरा ये सारा ख़ज़ाना क्या यूँ ही लावारिस सा पड़ा रह जाएगा...

नहीं जान.. इस ख़ज़ाने को यूँ ही गुम नहीं होने दे सकती मैं.. इसलिए लो आज ये सब तुम्हारे नाम करती हूँ... गूगल इनएक्टिव अकाउंट मेनेजर को बता दिया है मैंने कि मेरे बाद इस ख़ज़ाने की चाभी तुम्हें दे दे... सुनो, मेरे बाद इसे सम्भाल के रखना... मेरी ज़िन्दगी भर की जमा पूँजी है इसमें... मेरे वो सारे बचकाने ख्व़ाब... मेरी बे-सिर-पैर की ख़्वाहिशें... जिन्हें तुमने बड़े प्यार से पूरा किया हमेशा वो सब यहाँ जमा हैं... कल जब मैं नहीं होऊँगी तो भी इसके ज़रिये मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूँगी... तुम्हारा हमसाया बन के !

4 comments:

  1. बहुत दिनों बाद पढ़ा आपको , जान की जान ही लेने पर उतरी है क्या :)
    मर्मस्पर्शी !

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  2. एकाउण्ट तो ठीक है, स्मृतियों का क्या।

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दिल की गिरह खोल दो... चुप ना बैठो...

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